तुम जैसे हो अच्छे थोड़ा नजर आओ।
मैंने कब चाहा कि तुम मेरे घर आओ।।
झाड़ू लगा कर साफ जब जब करूँ।
तुम किसी बहाने आकर तकराओ।।
दिल को तसल्ली देने के अल्फाज़ हो।
बेहतर न हो तो शब्द सुन कर जाओ।।
चाय बना कर पिलाउंगी दूध वाली।
बस थोड़ा बाजार से दूध लेकर आओ।।
मुस्कान तुमको सुकून देगी 'उपदेश'।
मुझे कभी-कभी ही सही नजर आओ।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद