धूल की चमक
किसी ने धूल क्या झोंकी आंखों में
पहले से बेहतर दिखने लगा
किसी ने धूल क्या झोंकी आँखों में,
सच के आईने में सब साफ़ दिखने लगा।
जो था धुंधला-सा वो चेहरा मेरा,
अब और गहराई से समझने लगा।
वो फरेब जो छुपे थे निगाहों के पीछे,
अब हर झूठ का पर्दा गिरने लगा।
धूल ने जो भी छिपाया था मुझसे,
वो असलियत मेरे सामने खुलने लगा।
धूल का परदा हटते ही,
दिल की आँखें खुलने लगीं,
जो दर्द सहन न कर सका मैं कभी,
वो ज़ख्म धीरे-धीरे सिलने लगीं।
धूल ने धोखे का राज़ बताया,
सच का साया अब पास आने लगा।
किसी ने झोंकी धूल आँखों में,
पर मैं पहले से बेहतर देखने लगा।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




