हमारी बेकरारियों पर, उनकी निगाह भी नहीं..
आंखों में आंसू नहीं, होठों पर आह भी नहीं..।
ये इक–तरफा मुहब्बत भी, क्या अज़ीब शह है..
इस अंज़ाम का, कोई चश्मदीद गवाह भी नहीं..।
हर दफ़ा दिल को, किन बातों से बहलाते हम..
हम बे–ख़्याल नहीं, और उनको परवाह नहीं..।
हमें तो अब भी अपनी, वफ़ा पर यकीं कम नहीं..
ज़माने ने चाहा, मगर हम उतने गुमराह भी नहीं..।
आज चांद भी आसमां में, कहीं नज़र आया नहीं..
मगर तेरे पहलू में, ये रात उतनी सियाह भी नहीं..।
पवन कुमार "क्षितिज"