काली दाल- डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
गलतियां करते-करते,
अंकी इंकी डंकी लाल
चूल्हे पर रखा,
काला पतीला हो गया।
फिर पका रहे,
काली दाल।
विषय की गहराई,
तुझे समझ ना आई।
नियुक्ति भी तो,
फर्जी कागजातों पर पाई।
डर रहा है इतना,
सोते-सोते गिर रहा।
बैसाखी के सहारे,
तू जी रहा।
मूर्खों की महफिल में,
सुर छेड़कर तूने।
किस किसको,
चुनौती दे दी।
बगैर माचिस के,
आग को हवा दे दी।
जल रहा,
तेरा घर।
उठ रहीं,
आग की लपटें।
याद कर,
छल, कपटी,कपटें।