तानाशाही- डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
स्वाभिमानी था, स्वयं फंदे पर झूल गया।
बिलख रहे हैं बच्चे, जीवन भूल गया।
रोज मरता था, रोज जीता था।
वर्षों से यही खेल, तानाशाह करता था।
बकाया दिखाकर पुराना, जान ही उसकी लेली।
ऐसे ही जोड़-तोड़ करके, बना रहा है एक नई हवेली।
पूछ रहा वह लटका -लटका, कसूर था क्या मेरा।
अपनी जीने की चाह में, कितनी जिंदगी लील गया शेरा।
जो बीती है मुझ पर, आज मेरी बारी थी।
जागरूक न हुऐ अभी ऐ! "विख्यात", कल तेरी बारी होगी।