खुशी खोजने निकले भटक रहे।
राह लम्बी निकली पैर पटक रहे।।
भूख प्यास ने कही का ना छोड़ा।
जीविकोपार्जन में ही अटक रहे।।
परिवार संग बिताए पल याद कर।
पश्चाताप की जठराग्नि में दहक रहे।।
झक मारकर लौट लिये अपने घर।
तरह-तरह की कहानिया फैक रहे।।
अपनी दुर्दशा कैसे कहे 'उपदेश'।
भूत उतर गया घर में रोटी सेंक रहे।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद