काश कहीं उस दिन आँगन में ,
धर्मराज के आमंत्रण में l
मामा यदि दो मा हो जाता ,
कौरव पांडव बंधु मिलाता l
दुर्योधन का दंभी माथा ,
ज्येष्ठ चरण में यदि झुक जाता l
पांसे फेक यदि उस चौसर के ,
सबने हाथ मिलाए होते l
भारत की इस अटल धरा में ,
कितने इंद्रप्रस्थ हैं होते l
दुःशासन यदि केश छोडकर ,
दोनो बाहों को फ़ैलाकर l
अपने ही उन बिछड़े जन को ,
कसकर गले लगाये होते l
धृतराष्ट्र यदि पुत्र मोह तज ,
राजधर्म के उस अंकुश में l
भीष्म विदुर के नीति शास्त्र से ,
अपने कर्म दिखाए होते l
भारत के इस अटल धरा ......
काश कहीं यदि ऐसा होता ,
पार्थ धनंजय भी झुक जाता l
वृकोधरण की भीषण ऊर्जा ,
भावनाओ से फिर भर जाती l
अश्वनी कुँवर के कोमल सुत वो ,
दुर्योधन के धन बन जाते l
सबको मिलता देख धर्मसुत ,
सिंहासन ठुकराये होते l
भारत के इस अटल धरा में ...
महाबली दुर्योधन वायुसुत ,
हलधर गुरूवर के हल से फिर l
पावन धरा के इस आँचल मे ,
चुन -चुन पुष्प खिलाये होते l
इन सबमे यदि रवि तनय को ,
सब भाई अपनाये होते l
हस्तिनापुर के ध्वज में उस दिन ,
दिनकर खुद आ बैठे होते l
भारत के इस अटल धरा...
चक्र व्यूह कुचक्र न रचता ,
न रणकाली नाची होती l
न पांचाली रोयी होती ,
गांधारी गृह खुशहाली होती l
अभिमन्यु सा कोमल बालक ,
भीष्म ह्दय से लिपटा होता l
हस्तिनापुर के रक्षा हित वो ,
हिडिम्बा सुत खड़ा जो होता l
भारत के इस अटल धरा में .
देवों के वरदान पुष्प ये,
दुर्योधन सुन साथ जो होते l
रवि से अमृत वर्षा होती ,
देवराज षडयंत्र न रचते l
नारायण हरि छोड़ चक्र को ,
मुरली मधुर बजाए होते l
एक हस्तिनापुर के सुख क्या ,
कितने इंद्रप्रस्थ हैं बनते l
भारत के इस अटल धरा में..
तेजप्रकाश पांडे ✍️ इंद्रप्रस्थ कविता कॉपीराइट नियमो के अधीन है