न किसी ने रचा, न किसी ने गढ़ा,
स्वयं से स्वयं में जो हुआ खड़ा।
ना आदि, न अंत, न कोई आकार,
स्वयंभू है वह, जग का आधार।
ना जन्म लिया, ना मृत्यु को पाया,
काल के बंधन को जिसने मिटाया।
स्वयं ही शाश्वत, स्वयं ही ब्रह्म,
अखंड, अजर, अमर परमहंस।
न कोई तत्व, न कोई उपाधि,
ना कोई सीमा, न कोई बाधा।
जिसे खोजें योगी ध्यान लगाकर,
जो बसता हर कण में समाकर।
हर श्वास में वह, हर आकाश में वह,
हर धड़कन में, हर प्रकाश में वह।
जिसे जान ले, वह मुक्त हो जाए,
स्वयं में ही स्वयंभू को पा जाए।