हमारी ज़िम्मेदारी
बन्धनों की डोर ने
कुछ यूँ उलझा लिया है उन्हें,
कि अक्सर वक्त गुज़ारने के लिए
वक्त बिताना पड़ता है।
तोड़ नहीं पाते वे
अपनी ही बनायी जंजीरों को।
चाहें यदि उस तन्हाई से बाहर निकलना,
तो कभी उम्र डरा देती है,तो कभी यह समाज।
क्यों भूल जाते हैं हम?
यह एक जीवन चक्र है।
कल जिन्होंने हमें आत्मनिर्भर बनाया,
आज उन्हें उम्र का अहसास न कराते हुए,
उन्हें आत्मनिर्भर बनाना
बदलते समाज से दोस्ती कराना
हमारी ज़िम्मेदारी है।
बुढ़ापा कोई सजा नहीं ,एक उम्र का दौर है।
उन्हें समझाकर,उनके जीवन को जीने की सही राह दिखानी है।
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है