हम बुरे ना थे, फिर भी ज़माने ने सुधारा हमको..
नदी में जो कूद गए, फिर किसी ने पुकारा हमको..।
वो भी हमसे टकराते रहे, यहां–वहां हर मोड़ पर..
और महफ़िलों में ऐलान कर, बतलाया आवारा हमको..।
सबने ही उनकी मुहब्बत के अफ़साने तो बयां किए मगर..
वो जो मिले तो, एक बार भी ना किया कोई इशारा हमको..।
दर्द के समंदर में भी जाने क्यूं, तूफ़ाँ उठते है बार बार..
लहरों से इल्तिज़ा है, कि दिखा दे एक बार कोई किनारा हमको..।
उनकी बेवफ़ाई का ना जिक्र हो कहीं भूल से भी..।
मेरी वफ़ा में है सिफ़त इतनी, नहीं उनकी बदनामी गवारा हमको..।