वो चल पड़ा था बिन बताए,
हवा में उसकी बात थी।
गली के मोड़ मुस्काए थे,
कहीं कोई सौगात थी।
न बांसुरी, न बाजे थे,
फिर भी साज उठे कहीं।
उजाले आँख से बोले,
"वो पास है — यहीं कहीं।"
धूप रेशमी सी लगने लगी,
छाँव भी अब गुनगुनाई।
ज़मीन के कंधे पर जैसे,
उसकी परछाईं उतर आई।
कदम थमे थे धड़कनों से,
रास्ता चुपचाप था।
कुछ न बोला आसमान ने,
फिर भी सबकुछ साफ़ था।
घंटी नहीं बजी मंदिर में,
फिर भी मन आरती हुआ।
जैसे वो आया नहीं —
प्रकृति में समाया हुआ।
कानों ने नाम नहीं सुना,
पर नज़रें सब कुछ जान गईं।
जिसको पाकर कुछ न माँगा,
उसके जाने से पहचान गईं।
कोई महबूब आया हो जैसे,
पर प्रेम बोलता न हो —
बस हर चीज़ उसकी हो जाए,
और कुछ बचता न हो।
आज वो आया है चुपके से जैसे
सदियों से कोई राह देखी हो...
ना बाजा, ना शोर, ना परछाईं,
फिर भी जैसे ऋतु ने साँस ली हो।
फूल खिले तो देखा मैंने —
कोई उन्हें छू गया अभी-अभी।
हवा ने कानों में कुछ कहा,
"वो है यहीं, कहीं-कहीं..."
धूप नहीं उतरी थी अब तक,
फिर भी आँगन उजास था।
दिल की मिट्टी भीग गई यूँ,
जैसे कोई पास था।
किसी ने फूल नहीं फेंके,
फिर भी रंग बिखर गए।
वो कुछ भी कहे बिना
दिल के अक्षर उभर गए।
ना अल्फाज़, ना इशारे थे,
ना कोई रंगीन कथा।
फिर भी वक़्त ठहर गया था,
जब वो सामने था।
- ललित दाधीच।


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
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