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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

सो मैंने बेटी दान नहीं किया

माँ बाप की दुआओं में तो कमी न थी
फिर क्यूँ पराये घर जा के बेटी बची न थी

सबने देखा है बहू को ख़ाक में मिलते हुए
वो भी तब जब रंग मेंहदी की उतरी न थी

परायों से प्यार की उम्मीद हीं क्यूँ की जाए
जो हो चुका वही हो रहा ये नई बात न थी

शिक्षा रूपी ज़ेवर से मैंने तो बेटी का बदन भर दिया
जानतीं हूँ जौहरी की कमी कभी न है न थी

प्रथाएँ बदलती रहती है, परिवर्तन वक्त का तक़ाज़ा है
सो मैंने बेटी दान नहीं किया क्योंकि वो वस्तू न थी




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (10)

+

Lekhram Yadav said

लाजवाब रचना, मेरी प्यारी बहना, आपको सुप्रभात सहित नमस्कार।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Bahut arthsheel rachna Suprabhaat Pranam 🙏🙏 Mam

Sanjay Srivastva said

अत्यंत मार्मिक

श्रेयसी said

Suprabhat Lekhram bhaai aapko saadar pranaam 🙏🙏

श्रेयसी said

Suprabhat pranaam Ashok ji 🙏🙏

श्रेयसी said

Dhanyawad Sanjay ji🙏🙏

वन्दना सूद said

Bahut sundar rachna 👏👏👌👌heart touching

श्रेयसी said

Bahut-bahut aabhar ma'am 🙏🙏 lekin ye sirf rachna nahi haqeekat hai maine ye kadam uthaaya hai .

वन्दना सूद said

संस्कृति के अलग जा कर कोई भी निर्णय लेना आसान नहीं है आपको और आपके जज़्बे को नमन 🙏🙏

श्रेयसी said

लेकिन कभी बाल विवाह, सती प्रथा भी तो बन्द हुआ था और किसी न किसी को तो शुरुआत करनी हीं पड़ेगी। धन्यवाद 🙏🙏

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