वो जुनून जो एक ही रंग का कैदी रहा बरसों तलक, बाक़ी ज़िंदगी के सारे जज़्बे भी फ़क़त शतक तक सिमट गए।
फुटबॉल की मेहनत में क़दमों की दुआ थी जो दब गई, वो दम जो रगों में दौड़ रहा था, कमेंट्री की नकल तक सिमट गए।
कबड्डी की साँसों में मिट्टी की क़सम थी अहले-वतन, मगर टेलीविजन की चकाचौंध में गँवई (गाँव की) ताक़त तक सिमट गए।
हाँ वो हॉकी जो कभी देश की रूह में बहती थी रवाँ, वो अज़्म (संकल्प) जो सोने का निशाँ था, अतीत की चर्चा तक सिमट गए।
वो तीरंदाज़ी की ख़ामोशी, जहाँ ज़ेहन ख़ुद से सवाल करता है, निशाना जो सत्य पे था, वो मैदान की सीमा तक सिमट गए।
उन्हें मालूम था तलवार की धार असली फेंसिंग है, मगर बहाने बनाने में, खेल के बजट तक सिमट गए।
पहलवानों की क़वायद (अभ्यास) में सुलतान की हिकायत (कहानी) थी, वो मिट्टी की खुशबू थी जिस्मों में, जो सिर्फ़ दंगल तक सिमट गए।
टेबल पे बॉल की रफ़्तार इशारा थी तेज़ नज़रों का, मगर तवज्जो बदलते ही टेबल के किनारे तक सिमट गए।
अरे रूह को आज़ाद करो, ज़िंदगी को परवाज़ दो अब, हम ख़ुद की पहचान को एक गोदाम तक सिमट गए।
ये मुल्क रंगों का है, क़ुदरत का अदभुत नक़्शा है, फ़ैसला आज है, कि क्या हम गिने चुने नाम तक सिमट गए!!

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




