बाबुल के अंगना
अचानक से कोई कह दे मुझे
चल चलें आज बाबुल के अंगना
वो गलियां, वो सखियों का मिलना
वो छम छम बहता नदी का किनारा
चल चलें आज बनके पल का गहना !!
वर्षों से सुनी पुकारें वो पगडंडियां
आस लेके खड़ी,आयेंगी मेरी सखियां
कदमों की आहट ढूंढ रही निशानियां
चल चले, गले से लगाकर यादें हैं भरना !!
मस्तियाँ की आड़में तोड़े मौन गलियाँ
कुछ न कहो बस चुप रहकर निहारा करों
ये वक़्त फिर न लौटेगा उसे थाम लो ज़रा
चल चलें सो जाएँ वही, बाबुल के अंगना
ठहर जाएं, ठहरना शायद न हो दुबारा !!