कलम ठिठक गई शब्दों से,
मन गूंगा है, मौन हुआ।
जिसने गाया प्रेम का सुर,
वो नीरज अब कौन हुआ?
गीतों में जो जादू था,
छंदों में जो चाँद खिला,
अश्कों से जो दीप जले,
हर दिल को जो गीत मिला।
"कारवाँ गुजर गया" कह कर,
जो जागा देता रहा सबको,
आज वही खुद चुप सोया है,
छोड़ चला फिर नभ को।
मधुर बयार, मृदुल स्वर उसका,
अब बस यादें गाता है।
नीरज का हर शब्द अमर है,
जीवन को मुस्काता है।
श्रृंगार, वेदना, दर्शन का,
हर पल जिसने रंग भरा,
वो कवि नहीं, एक युग था वह,
जिसमें हिंदी ने गर्व करा।
आज नमन उस दीप को करते,
जो अंधेरे में रोशन था।
नीरज था वो नाम, जिसे
हर कवि-हृदय में स्पंदन था।