~ ग़ज़ल ~
हम तुम वो एक नहीं हैं।
कारण मन नेक नहीं है।
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सोचो अपना साथी क्यों
महज हम हरेक नहीं है।
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छूट रहा दर घर सारा ,
कहीं रुकन टेक नहीं है।
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देखो दुनिया चलन कभी
सभी एक फेंक नही है ।
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रहना एक तपस्या है,
खाने का केक नहीं है।
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-'प्यासा'
Vijay Kumar Pandey pyasa