( कविता ) ( तुम से ही.....)
तुम से ही ये
जहां सुनहरा है
तुम न हो तो ये
जहां भी अंधेरा है
इसी लिए तुम
कहीं न जाओ
मेरे पास रहो मेरे
पास ही आओ
वेबजह यूं ही
कभी न तड़पाओ
कुछ मेरी सुनो
कुछ अपनी बताओ
तभी तो जा कर
बनेगी बात
नहीं तो देखो
दिन भी है रात
नहीं तो देखो
दिन भी है रात.......