आज फिर किसी माँ से उनकी मर्जी नहीं पूछी गई
किसी ने ज़िम्मेदारी के बोझ से उन्हें महीनों में बाँट दिया
और किसी ने अभिमान में उनकी बंदिश स्वीकार कर ली
खुदगर्ज़ी में यह भी नहीं जानना चाह कि उनके दिल में क्या है
जिनके दो बेटे हैं वो समाधान में उलझ जाते हैं
जिनके एक बेटा है वो वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं ..
वन्दना सूद