शब्दो को पिरोता रहा दिल मुस्कुराता रहा।
चारपाई से देखा प्रकाश झिलमिलाता रहा।।
जीवन में जो मिला प्रभू का प्रसाद समझा।
बडी सिद्दत से हरेक रिश्ते को निभाता रहा।।
खुले आसमान में संग तेरा पाकर 'उपदेश'।
प्रभू का शुक्रिया करके संसार बनाता रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद