जो मुमकिन था दोस्ती की खातिर मैंने किया,
था जो मुमकिन उसकी खातिर उसने किया,
हर बार दिमाग़ उसकी असलियत बताता रहा,
दिल को अपना सा लगा फरेब जो उसने किया,
मलाल नहीं जो मैं फिर दगा लेकर कर आया हूँ,
दोस्ती के नाम पर जिसने जो कहा मैंने किया,
खाली है दिल सबके यहाँ, किसी से उम्मीद कहाँ
फरेब, दोस्ती के नाम मैंने सहा, जो उनसे किया,