नंद के लाला हे ! दीनदयाला
अंगना आनि पधारो श्यामा
तोहे नहिलाऊँ पीत वसन तोहे पहिराऊँ
मोर मुकुट तोहे शीश सजाकर
नित नित मे तुझको दुलराऊँ
माखन मिश्री का भोग लगाऊं
नित दिन मै तुझको ही ध्याऊँ
कानन कुंडल गल बैजन्ती माला
अंगना आनि ---
लकुटि कमरिया तोहे बँधाकर
अंक उठा तोहे दुलराऊँ
घुट्नन पर जब चलिहौ लाला
मै तुझ पर वारी वारी जाऊँ
पैंजनिया तोरे पाँव बधाकर
छम छम अंगना माहि चलाऊँ
देख तोहे मै हरिसाऊँ
नंद के लाला ----
तुम आगे भाजो -तुम आगे भाजो मै पिछन आऊँ
फ़िर भी तोहे पकर नाहि पाऊँ
मेरे लाला ओ राज़दुलारा
अंगना आनि पधारो श्यामा
कब से मैया तुझको पुकारे
तुम भी मैया एक बार पुकारो
तुम भी मैया एक बार पुकारो
नंद के लाला हे दीनदयाला
अंगना आनि पधारो श्यामा
कवियित्री - अर्पिता पांडेय
[हरवंशपुर आजमगढ़ उत्तर प्रदेश]