छूकर भी नहीं छूती
ए हवा बदमाश बड़ी ।।
सिर्फ़ एक आह सुलग गई
नादान थी वो राख ना बन पाई।।
काफ़ी हद तक बदनाम हुए
आंधीओ में तभी तो टिक पाएं ।।
थीं अजीब चिंगारी तिनकों में जली
आख़िर बिन जल अब बुझने चली ।।
खेल ये सारा था तो हवाओ का
फ़रियाद भी ख़ुद बेअसर हो गई ।।