प्रेम स्वाभाविक सम्बन्ध है,
मानव का आपसी सम्बन्ध है,
इसमें क्या विवेक लगे,
हर अश्रु में क्या खेल दिखे,
विषय नहीं जिसमें परख हो,
और ये ना समझे, देखने वाला हर तरफ हो
बगैर किसी के रह रहे और शायद उसी के रह रहे,
ये विमर्श नहीं की चिंतन करें,
हम अकेले हैं वो हर्ष रहें,
ना उन्हें लगे कि आजादी उनकी हम पर रहें,
ना हम विवश हो उनको कहने लगे,
मिलने के लिए कहां जाएं,
घर से घर तक की बात रहे,
वो जिस पल है सबके साथ रहे,
ना हम घंटों बिताए एक जगह,
ना पल पल पर विचरण करें,
हाँ कभी दिल पूछे तो,
सांसें अपनी लेते रहें।।
- ललित दाधीच