दूसरों की ज़मीन पर जो, मकांँ अपना बनाया है
वो ढह जाएगा उस के आंँसूओं से, दिल जिसका दुखाया है
पराये धन से सबकुछ खरीद सकते हो संस्कार नहीं,
क्या दोगे औलाद को? वही,जो तुमने पाया है
माना संस्कार को कहते हो "माई फूट" मगर
खुल गई गर आंँखें बच्चों की, तब समझोगे क्या गंवाया है
माँ-बाप को जो पहुँचाते हैं, वृद्धाश्रम बड़े चतुराई से
बच्चे जब करते अनुसरण, सब कहते इतिहास दोहराया है