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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

रसमलाई

पहली बार मिली थी तुम भाई की सगाई में,
पीले सूट में जँच रही थी जैसे डूबी हो रसमलाई में,
तुम्हें देखते ही मेरा मन कह रहा था कि तुमसे दिल की बात कर लूँ,
मम्मी से मिलवाकर तुमको पक्की अपनी बात कर लूँ,
मगर मेरे शर्मीले स्वभाव ने मेरा बंटाधार कर दिया,
मेरे सामने मेरे मित्र ने तुमको इज़हार कर दिया,
अगर उस दिन मुझे शर्म आई ना होती,
तो आज तु मेरे दोस्त की लुगाई ना होती,
मैं ही ले रहा होता तेरे साथ फेरें,
यूँ तेरी शादी में बैठ कर रसमलाई पे रसमलाई मैंने खाई ना होती।

लेखक- रितेश गोयल 'बेसुध'




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

वन्दना सूद said

Haha sir very nice 😊👌👌😂kuch different padh kar maza aaya 👏👏aapka bahut shukriya

Ritesh Goel replied

vandana ji bahut bahut abhar dhanyavad

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Ha Ha Bahut Badhiya Ritesh Ji....Laazwaab... Vese Rasmalayi Ki Shadi m Rasmalayi nahi mili kya?....Just Kidding type question.....

Ritesh Goel replied

shukriya ashok kumar ji sir ab to har shadi me last me rasmalai khakar hi aata hoon

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