जीवन संचार हुआ जब से,
पद अथक अनंत चले तब से,
मन में लिए जीत के गीत चला,
सीख मिली , न हार हुयी।
अविरल सरिता सा नीर बहा,
नभ अम्बर में बहती है हवा,
वैसे ही चला वैसे ही उड़ा,
कई बार गिरा , न मात हुयी।
पुष्पों सा खिला काँटों में रहा,
उफ़ भी न हुयी हर मौसम है सहा,
सह धूप ताप कंकड़ पानी,
गया और निखर , न आग लगी।
कई बार गिरा , न मात हुयी।
सीख मिली , न हार हुयी।
-अशोक कुमार पचौरी