तुम मेरे जीने की आखिरी उम्मीद रही।
किस लिए रूह की पहली पसन्द रही।।
दर्द कई तरह के आए गए जीवन भर।
कुछ कहा नही सुनने की उम्मीद रही।।
तेरी कमी है या फिर मायूसी सी कोई।
हर रात सपनो में तुम्हारी उम्मीद रही।।
कुछ बहाना करके बुला लो कभी मुझे।
तुम्हारे बुलावे की कब से उम्मीद रही।।
फिर रेत में खेलेगा नन्हा कोई 'उपदेश'।
उसको खिलाने की कुछ उम्मीद रही।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद