मिल जाते हैं लोग पल भर में,
हँसते हैं, बातें करते हैं साथ में,
पर जब ज़रूरत पड़े एक दूजे की,
समझो संग रहने का रिवाज़ अब रहा नहीं।
दिलों में दूरियाँ बढ़ती जा रही हैं,
फ़ोन पर ही बस बात हो रही है,
मिलने का और दिल की बात करने का,
समझो रिवाज़ अब रहा नहीं।
रिश्ते बनते हैं, टूटते हैं पल भर में,
जैसे कोई मिट्टी का खिलौना जैसा,
उन्हें संजोकर रखने का 'उपदेश',
समझो रिवाज़ अब रहा नहीं।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद