दबी दबी सी कुछ बातें
बिन कहें उड़ने लगी
पंख पसारे कर्णमें गूंज ने लगी
दबी दबी सी कुछ बातें.....
कभी हंस के तो कभी उछल के
बिन लफ्ज़ोंमें गाने लगी
कभी रोकर ग़म से तड़पने लगी
दबी दबी सी कुछ बातें.....
आई वो यादों की बारातमें
लय को सोता रख, ख़ुद जगने लगी
भीड़ हो या तनहाई समझ ने लगी
दबी दबी सी कुछ बातें.....
नज़र छुपा के नजरोंमें दिखने लगी
क्यों रहें अनजान दृश्यमें सजने लगी
दबी गहराई से वो ऊंचाई छू ने लगी
दबी दबी सी कुछ बातें.....
ग़मगीन सी, ख़ामोश सी, रहने लगी
कभी हिम्मती होगी सोचने लगी
बिन ख़ुशी खुश होना सिखने लगी
दबी दबी सी कुछ बातें.......