रंग बदल रहा है आसमान का
समुन्दर का पानी भी लाल हो रहा है |
कोई कहता है ग्लोबल वार्मिंग
मै कहता हूँ पाप का दर्या | |
एक जीव की क्या जुरूरत
अभी अभी चाँद पे कदम रखा है |
इतनी भूख भी ठीक नहीं जनाब
सारा ब्रम्हांड पुकार रहा है | |
साल दो साल की उमर किनारी
बाँध रहे है आशियाना हवा में |
कितने महल मिट्ठी के
खंडहर हो चले समय की धारा में | |
सीधा देखना छोड़ दे बांवरी
सारा खेल चक्र का है |
कितना भी भागते रहो अविरत
आता वही है जहाँ शुरवात है | |
कितने पंडित बैठे है घमंड में
हमने भी कुछ कुछ जान लिया |
घोसले में बैठे पंछी ने
मानो आसमान छू लिया | |
कभी सोचता हूँ मै यह चक्कर क्या है?
सर पे बढ़ते बालों का राज क्या है?
राज राज है जनाब
इसे राज ही रहने दो |
जिस दिन जानोगे
दुनिंया खो दोगे | |
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️