खुद काम करते नहीं दूसरों को काम कराने चले
खुद किसी को जीता नहीं दूसरों को जिताने चले
खुद कभी दौड़ा नहीं दूसरों को दौड़ाने चले
खुद सो कर उठे नहीं दूसरों को उठाने चले
खुद आप बने नहीं दूसरों को बनाने चले
खुद अंधे दिखते नहीं दूसरों को दिखाने चले
न जीने न मरने चले
ये क्या करने चले ?
ये क्या करने चले.......?
----नेत्र प्रसाद गौतम