खामोश लबों से कितना कुछ कह गया,
इसके बाद भी तो, बहुत कुछ रह गया।
इतनी शिद्दत से निभाया उसने रिश्ता,
मुहब्बत का एक कर्ज मुझपर रह गया।
जितना दे सकता था, मैंने दिया उसको,
अपना नाम न देने का मलाल रह गया।
बिछड़ते वक्त कुछ यूँ लिपटी थी मुझसे,
खुशबू मेरे कपड़ों में आज तक रह गया।
जो मिलता नहीं है किस्मत से भी कभी,
माँगा किसने, किसके नसीब में रह गया।
🖊️सुभाष कुमार यादव