पक्षपात की दुनियाँ में
ठुकराई अक्सर जाती हूँ
मोम सी गुड़ियाँ सी
फिर पत्थर मैं बन जाती हूँ
लोग कहें कमजोर है
मारे ताने, करें नफ़रत
पर निःसहाय नहीं...
सहनशीलता की मैं शिला हूँ
घृणा की आग बुझाऊँ
इर्षा की तलवार तोडू
त्याग तपस्या से संसार जोडू
स्नेहसागर की अटूट मैं धारा हूँ
ज़ुल्म न करो, लिहाज़ करो
खटके तो शिकायत करो
अनेको अवतार मेरे,गरिमा का पान करो
वर्ना रूद्र स्वरूप "शक्ति" की अवतार हूँ