प्रिय सखी जरा बताना
पार्टी में कितने बजे है जाना
बस शॉपिंग का प्लान है या है बाहर खाना
और क्या पहन रही हो, जरा दिखाना
इन छोटी छोटी खुशियों से ही तो
सुरीला है जिन्दगी का तराना
प्रिय सखी...
काम वाली बाई के कितने नखरे हैं
आने जाने वालों के रोज के लफङे है
सास कसती वही पुराने फिकरे है
पतिदेव तो टोटल बेफिक्रे है
शाम को वाक पर जब आओगी
इन सब मामलों पर चर्चा कर जाना
प्रिय सखी..
कपङे तहाते, अलमारी जमाते
रोटी बनाते, तड़का लगाते
सोतों को जगाते, जागों को सुलाते
लगता है गुजर गया जमाना
दो चक्कर लगाने में
दो की चार करके जाना
प्रिय सखी...
एक तुम ही तो हो जो आज भी
पुकारती है मुझे लड़की
मुझमें स्फूर्ति का संचार करती
मिलकर हर राई का पहाड़ करती
तुम हो तो हम हैं
और हमसे है ज़माना
प्रिय सखी...
चित्रा