वह प्रेम में इस कदर डूब चुकी है।
की अब उसकी सखियां भी
उसको पागल कहती है।
वह सिर्फ उसी के ख्याल मे जीती है।
ना खाने की सुध न खुद का ख्याल,
उसके प्रेम में खुद को समर्पित कर चुकी है।
उसी की फिक्र में खोई कभी
हसती है तो कभी रो देती है
उसकी आवाज सुनकर ही उसे चैन आता है
उसने खुद के तन मन को
उसके आत्मा में विलीन कर चुकी है
उसको देखती है तो मुस्करा देती है
पल भर में आंखो में आंसू होते है
उसकी राते करवटो में तो
दिन बेचैनी में बीतते है
उसने जाना है की प्रेम कितना मधुर है
और वह इस मधुरता में कही खो गई है
वह प्रेम के श्रृंगार में रसमयी हों गई है
अब उसके लिए प्रेम ही उसका अलंकार है
वह सच में प्रेम में पागल हो गई है