तुम्हें माँगा है, तुम्हें ही माँगूँगा,
आख़िरी साँस तक तुम्हें चाहूँगा।
समा की चाहत में रहा परवाना,
जैसे बंजारा ढूँढता है आशियाना,
मैं भी वैसे सदा, तुम्हें ही ढूँढूँगा,
आख़िरी साँस तक तुम्हें चाहूँगा।
न खिली गर कलियाँ चमन में,
न महकी खुशबू फिर गगन में,
तुम्हारी चाहत से मैं तो महकूँगा,
आख़िरी साँस तक तुम्हें चाहूँगा।
मेरा दिल बन जाये चाहे पत्थर,
आँख से लहू गिरते रहे झर-झर,
तुम्हें पाने रोज इबादत मैं करूँगा,
आख़िरी साँस तक तुम्हें चाहूँगा।
मरुस्थल तरसता जैसे प्यास में,
निहारता काले बादल आस में,
उम्र भर तुम्हारा रास्ता निहारूँगा,
आख़िरी साँस तक तुम्हें चाहूँगा।
🖊️सुभाष कुमार यादव