चंद सिक्कों में बिकना न आया हमें
झूठ को सच दिखाना न आया हमें
बात मीठी सी हमसे कभी ना बनीं
इसलिए भीड़ ने ही भगाया हमें
हो गए हम अकेले तो गम कुछ नहीं
साथ झूठों का लेकिन न भाया हमें
दोष देना किसी को यहां व्यर्थ है
वक्त ने ही अभी तक सताया हमें
फेरते थे नजर जो बुरे वक्त में
आज देखो गले से लगाया हमें
जागकर जो बितायीं हैं रातें कई
फर्ज़ ने ही हमारे जगाया हमें
जो गिरा दे हमें कोई ऐसा नहीं
क्योंकि प्रभु ने हमारे उठाया हमें
शूल हैं राह में तो भी क्या हो गया
कर पकड़ कर प्रभु ने चलाया हमें
ऐ 'प्रभा' बात तू मान ले एक ये
गलतियों ने हमारी सिखाया हमें
प्रतिभा भारद्वाज 'प्रभा'
मथुरा (उत्तर प्रदेश)