खामोशियों में भी,
शब्दों का तूफान है।
बदलते सूरज और चंदा के रंग में,
अश्रुओं का सहलाब है।
लौट नहीं पाता वक्त,
वरना हरेक के अंदर,
ख्वाहिशें हजार है।
ढूंढता मिलेगा,
हरेक यहां पश्चाताप को।
नहीं ढूंढ पता तो,
ईश्वर में अपने आपको।
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|
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लौट नहीं पाता वक्त,
वरना हरेक के अंदर,
ख्वाहिशें हजार है।
ढूंढता मिलेगा,
हरेक यहां पश्चाताप को।
नहीं ढूंढ पता तो,
ईश्वर में अपने आपको।