मैं हर चीज़ में थोड़ी ओवर हूँ,
ना बस हल्की-सी, ना बस थोड़ी-सी,
या तो पूरी बहार हूँ,
या फिर पतझड़ की अंतिम टहनी।
मैं प्रेम करूँ तो आँचल बन जाऊँ,
हर दुःख को समेट लूँ,
और जब टूटूँ तो ऐसी बिखरूँ,
कि हर कण में मेरा नाम रह जाए।
मैं मुस्कराऊँ तो फूलों की सुगंध तक महके,
और रोऊँ तो रातें तक जाग जाएँ।
मैं चाहूँ तो आत्मा तक पिघल जाए,
और जब छोड़ दूँ तो परछाई भी साथ न चले।
मुझे किसी की बात बुरी लगे तो दिल तक चुभे,
और जब माफ़ करूँ तो जन्मों के लिए कर दूँ।
मैं इंतज़ार करूँ तो सदियों की सीमा तोड़ दूँ,
और जब भूलूँ तो नाम तक मिटा दूँ।
मैं जब सज़दों में झुकूँ तो पृथ्वी तक सिर झुका दूँ,
और जब उठूँ तो आकाश तक उड़ जाऊँ।
मैं जब धैर्य रखूँ तो पत्थर भी मोम बन जाए,
और जब सब्र टूटे तो आग भी ठंडी लगे।
मैं चाहूँ तो दुनिया से लड़ जाऊँ,
और जब हारूँ तो खुद को भी भुला दूँ।
मैं हर चीज़ में थोड़ी ओवर हूँ,
या शायद…
मैं कुछ भी अधूरा जीना नहीं जानती!