कापीराइट गजल
जहन में उनके जब से मैं समाने लगा हूं
क्या चीज हूं मैं उनको नजर आने लगा हूं
कभी बुलाते नहीं हैं वो मुझ को घर अपने
क्यूं बिन बुलाए मैं घर उन के जाने लगा हूं
करती हैं मेरा पीछा यह अन्जान सी निगाहें
क्यूं इस तरह उनके दिल पर छाने लगा हूं
बसाना चाहता हूं मैं उनको अपने दिल में
उनके दिल में एक राह नई बनाने लगा हूं
ये हाल देख कर उनका मैं रह नहीं पाता
बेवजह ही उन्हें अब, याद आने लगा हूं
मेरे होके भी कभी वो साथ रहते नहीं मेरे
अजनबी की तरह जिन्दगी बिताने लगा हूं
मेरा घर भी मेरा होके नहीं लगता है मेरा
उनके आते ही घर से अब जाने लगा हूं
दिल में कौन किसी को बसाता है यादव
यह देख कर मैं खुद को समझाने लगा हूं
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है