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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

गजल - नजर आने लगा हूं

कापीराइट गजल

जहन में उनके जब से मैं समाने लगा हूं
क्या चीज हूं मैं उनको नजर आने लगा हूं

कभी बुलाते नहीं हैं वो मुझ को घर अपने
क्यूं बिन बुलाए मैं घर उन के जाने लगा हूं

करती हैं मेरा पीछा यह अन्जान सी निगाहें
क्यूं इस तरह उनके दिल पर छाने लगा हूं

बसाना चाहता हूं मैं उनको अपने दिल में
उनके दिल में एक राह नई बनाने लगा हूं

ये हाल देख कर उनका मैं रह नहीं पाता
बेवजह ही उन्हें अब, याद आने लगा हूं

मेरे होके भी कभी वो साथ रहते नहीं मेरे
अजनबी की तरह जिन्दगी बिताने लगा हूं

मेरा घर भी मेरा होके नहीं लगता है मेरा
उनके आते ही घर से अब जाने लगा हूं

दिल में कौन किसी को बसाता है यादव
यह देख कर मैं खुद को समझाने लगा हूं

- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

श्रेयसी said

वाह बहुत खूब, सुप्रभात सादर प्रणाम लेखराम भैया 🙏🙏

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद एवं सुप्रभात सहित सादर नमस्कार मेरी प्यारी बहना, अब तो आप खुश हो गई होगी आपसे किया हुआ वादा जो पूरा हो गया है।

वन्दना सूद said

बहुत खूबसूरत गज़ल 👌👌🙌🏻🙌🏻👏👏 करते हैं हम पीछा आपकी गज़लों का क्योंकि हर गज़ल आपकी दिल पर दस्तक देती हैं

Lekhram Yadav replied

आदरणीय वन्दना जी, आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, आपको सादर नमस्कार

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर रचना यादव सर जी। सादर नमस्कार।👌🙏

Lekhram Yadav replied

आदरणीय सुभाष जी आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं आभार तथा सादर नमस्कार।

कमलकांत घिरी said

वाह वाह लाजवाब गज़ल सर जी आपको हार्दिक प्रणाम 🙏

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं स्वागत कमलकांत भाई, आपको सुप्रभात सहित सादर नमस्कार।

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