दुश्मनों में दोस्तों की तरह कुछ पल जी लिए
गुलों की मानिंद कुछ ज़ख़्म सीने से लगा लिए
बदनाम हो गए शहर भर में जिसकी ख़ातिर
रिश्ता क्या था और क्या हो गया ज़माने के लिए
बात ये नहीं है कि महफ़िलें पसंद नहीं हमें
कोई बहाना भी तो मुकमल हो जाने के लिए
अरसे से आरज़ू थी कुछ लिखने की
सख़्श कोई तो चाहिए समझने के लिए
दिल में आरज़ू है मरने की एक ज़माने से
ढूंढते है बस शख्श जनाजे पे रोने के लिए
हर चेहरे पे मायूसी सी छाई रहती है
हसंता है हर कोई बस दिखाने के लिए
शिकायत है ज़माने को उसके पास मेरे आने से
मिलता नहीं कोई उसे भी दिल बहलाने के लिए