हरितिमा आच्छादित वन,
गगनचुंबी वृक्षों से सघन,
रजत धार झरते नभ से,
शीत जल, तन-मन पावन,
अनुपम दृश्य, मन्त्रमुग्ध,
नैन निहारते, प्रसन्न मन।
प्रवाहित धारा में संगीत,
खगों के कलरव का गीत,
भ्रमर करते, मधुर गुंजन,
अनुभूत यूँ, मन के मीत,
रचूँ यहीं समीप पर्णकुटी,
सहज व्यतीत हो जीवन।
उस रचनाकार की रचनाएँ,
परे सोच, लगती कल्पनाएँ,
रचा है सब कुछ ऐसे अद्भुत,
सहज जुड़ जाती भावनाएँ,
देख कर, दृश्य मनभावन,
नतमस्तक हो करता नमन।
🖊️सुभाष कुमार यादव