सोचा था दुनिया बदल जाएगी,
ऑनलाइन जुड़ते ही नज़दीकियाँ बढ़ जाएंगी।
पर हक़ीक़त में तो ये जाना है,
हर मुस्कान के पीछे कोई अफ़साना है।
हज़ारों लाइक्स, दिल के पोस्ट पे,
पर दर्द सुनने वाला कोई नहीं होश में।
स्टोरी में हँसी, रीलों में मुस्कान,
असल में आँखें पूछें — "कब आएगा तू यार ?"
फॉलो करो, टैग करो, शेयर करो दिन-रात,
पर कोई नहीं देता सच्चे दिल का साथ।
DM में "miss you", status पे "bro",
पर ज़रूरत पड़ी तो सब बने “no show।”
टूटा दिल, नम आंखें, साँसे थीं बेसब्र,
पर सब लगे थे filters में ढूंढते सबक़।
"हमेशा हूँ साथ" ये कहते थे जो,
वो दिखे selfies में, लेकिन साथ कहीं खो।
कहाँ हैं वो कंधे जो बिना कहे समझें,
जो भीड़ में भी अकेलेपन को पकड़ें?
अब तो दोस्ती भी deals जैसी हो गई है,
लाभ हो तो active, वरना seen पे सो गई है।
दिखावे की इस दुनिया में थक गया हूँ मैं,
अपनों की तलाश में अब तक खड़ा हूँ मैं।
दो चेहरे काफी हैं, जो हों दिल से वफ़ादार,
जो वक्त पे आएं, ना हों बस त्यौहारों के यार।
अब ना चाहिए ये वायरल illusion का जाल,
जहाँ हक़ीक़त हो कमजोर और दिखावा बेहाल।
बस चाहिए दो दिल, जो सच में समझें हाल,
जो भीड़ में भी दें एक सुकून भरा ख़्याल।