मुहब्बत के मैदानों में, ये नफ़रतों की दीवारें क्या..
आंखों में धुंआ सा, और हथेलियों में अंगारे क्या..।
बेसबब सी तकरीरें, अखबारों में छपी हुई तस्वीरें..
हूज़ूम से उमड़ रहे, शहरों के और अब नज़ारे क्या..।
इश्क़ में मुब्तिला दिलो के ख्वाबों ख्यालों का क्या कहना..
आसमां ही ज़मीं पर उतरा, बाकी फिर चांद सितारे क्या..।
चल पड़े तो राहों की मुश्किलें देखकर भी क्या होगा..
आपने रुकते देखे हैं, किसी मंज़िल पर बंजारे क्या..।
उनके आने से बदल गया, रंग इन फिज़ाओं का..
अब आंखों में अपनी, कोई और मंज़र उतारे क्या..।