मुट्ठी बंध गई है
डॉ0 एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
बहुत सहा, अब और नहीं,
अत्याचार की यह इंतहा है।
हर साँस में उठती है ज्वाला,
बदलेगी यह काली हवा है।
मुट्ठी बंध गई है अब हमारी,
आँखों में संकल्प की ज्वाला है।
जो छीन रहे हैं हक हमारा,
उन्हें सच का दर्पण दिखाना है।
नहीं मानेंगे यह ज़ोर-ज़बरदस्ती,
यह तानाशाही का अंधेरा।
हर आवाज़ मिलकर उठेगी अब,
करेगी अन्याय का सवेरा।
हम मिट्टी के कण ज़रूर हैं,
पर मिलकर पर्वत बन जाएंगे।
अन्याय के हर गढ़ को तोड़कर,
एक न्याय का परचम लहराएंगे।