हमारा मरहला कहीं नहीं,
हम तो मुसाफ़िर है इन राहों के।
भटकते -भटकते कब और कहाॅं पहुॅंच जाए,
हम तो आवारा आशिक हैं इन गलियारों के।
हमारा किसी से कोई वास्ता नहीं,
हम तो तलबगार है अपने ख़्वाबों के।
जीते हैं फ़क़त ख़ुद में ही,
हम तो आदी है अपनी उन हसीन यादों के।
हमें किसी से उम्मीद नहीं,
हम तो उम्मीदवार है अपने नेक इरादों के।
किसी की आंखों में यूं नज़र आते नहीं,
हम तो राज़ है उन निगाहों के।
🖋️ रीना कुमारी प्रजापत 🖋️