कापीराइट गजल
आ लग जा गले फिर मुलाकात हो न हो
आ बूंदों में भीग लें फिर बरसात हो न हो
अब सज गई है महफिल चांद तारों से यूं
चांदनी के संग ऐसी हंसी रात
हो न हो
आ खुशियां मनाएं हम इन हंसी बहारों में
आओ खुल करें बातें फिर बात हो न हो
आ जश्न मना ले उजालों के सफर में
फिर इतने हंसी अपने दिन रात हो न हो
आओ गुनगुना लें हम मिलकर आज फिर
इस दिल में फिर से ये जज्बात हों न हो
दिल के समन्दर से कह रही हैं यह लहरें
इस दिल के तूफान में वो बात हो न हो
ऐसे करीब आकर यूं दूर जाओ न यादव
फिर ऐसे हंसी पलों में मुलाकात हो न हो
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है