बीच समंदर में नाव लहरों से जूझती है,
सितम ये कैसा, साहिल पे आ डूबती है।
जिसने काटा हर दाव मुश्किल भँवरों का,
मंजिल पर आ कर, वो पतवार टूटती है।
मुझे डूबते देख कर लहरें भी हैं परेशान,
उसी जगह पर आ-आ कर वो ढूंढती हैं।
वो चिराग जलता नाविक के इंतज़ार में,
उसकी लौ आखिर में लड़कर बुझती है।
जब इस अँधेरे में दिल घबराने सा लगा,
सर्द हवाएँ आ मेरा हाल-चाल पूछती हैं।
🖊️सुभाष कुमार यादव