काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
तुम्हें किसी ग़ैर के हाथों में जाने से बचा पाती,
काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
तुम्हें अपना बना पाती।
और कुछ पाने की आरज़ू नहीं ज़िंदगी में,
पर काश ! इस क़ाबिल होती कि
तुम्हें उन धोखेबाजों के शिकंजे से छुड़ा पाती।
काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
उन्हें मना पाती,
काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
उन्हें बता पाती।
अपना आशियाना जो उन्होंने कौड़ियों के भाव
लूटा दिया,
काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
उन्हें इसकी हक़ीक़त से वाक़िफ करा पाती।
काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
उनसे रूबरू हो पाती,
काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
उनसे गुफ़्तगु कर पाती।
फिर तो मसला हल हो जाता,
और ख़त्म मेरी ज़ुस्तज़ू हो जाती।
काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
उनके विश्वासघाती को सज़ा दे पाती,
काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
उसकी सच्चाई सामने ले आती।
दंड भुगत रहा होता वो,
पर काश ! मैं इस क़ाबिल होती कि
उसे बे -नक़ाब करने जाती।
✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️