कल-कल बहती निर्झर धारा, मन में सपनों का संकल्प लिए।
हर बाधा को चीर निकलती, उन्नति की पावन कल्प लिए।।
गरज-गरज बहती निर्झरिणी, गगन छूने को तत्पर है।
दृढ़ निश्चय की चट्टानों पर, इसका वेग अमोघ प्रखर है।।
चट्टानों ने किया विघ्न प्रबल, पर धारा ने पथ न मोड़ा।
कठिनाइयों का संग्राम सहेज, हर बंधन को उसने तोड़ा।।
झंझावातों ने घेर लिया, बिजली बन कर वह कड़क उठी।
परिणामों से क्या भय उसे,जो वीरता से लहर उठी।।
नदिया की हर नाद में, साहस का स्वर गूँज उठा।
लहरों में ज्वाला धधक उठी, हर बाधा से उसने युद्ध रचा।।
अरे! क्या तूफानों की शक्ति, एक बूँद को रोक सकेगी?
जो जलधि से मिलने निकली है, क्या राहें उसको टोक सकेगी?
अंततः जब लहरें थकतीं, सागर आकर गले लगाता।
नदी का संघर्ष सफल होता, स्वप्नों का सिंधु समाता।।
ये जीवन भी सरिता सम, संघर्षों का अनुवाद है।
हर पग पर अग्नि-परीक्षा, हर श्वास में रण-संवाद है।।
कभी असफलता की चट्टानें, तो कभी विश्वास की कमी होगी।
कभी रस्तों का धुंधलका, तो कभी सपनों में ठनी होगी।
कभी कष्टों की चट्टानों से, पथ कठिन हुआ करता है।
कभी अवसाद की धुंध घिरे, जब स्वप्न अधूरा मरता है।।
सपनों की राह में गर काँटे हैं, तो फूलों की भी तो खुशबू है।
माना संघर्ष का अंधियरा है तो विश्वास भी तो जुगनू है।।
जीवन पथ पर कंटक कितने, पर पग रुके नहीं वीरों के।
जो चलते हैं रणधीर सम, वे लिखते गाथा धीरों के।।
रणधीर वही, जो पथ गढ़े, अपने कर्म की धार से।
नर वही, जो थाम ले राह, पत्थर के भी प्रहार से।।
है संदेश धारा का , वीर बनो, निर्भीक चलो।
संघर्षों में तपकर ही, सोने सा दमक उठो।।
जो थमता है, वो रुक जाता है, जो बहता है, वो पा जाता है।
संघर्ष की इस धारा में ही, सपनों का सागर समा जाता है।।